जलाओ चराग़
जलाओ चराग़
जलाओ चराग़ मिल के सभी,
फैला अभी भी अँधेरा है।
हर तरफ़-हर दिशा व गली में-
दानव तिमिर का बसेरा है।।
तेल-बाती का दीपक जले,
मग़र ध्यान देना है इतना।
मन की इस गंदी बस्ती में-
भी रखना सदा उजेरा है।।
दानव तिमिर का.........।।
सभ्यता के लबादे को ले,
कहें फ़ख्र से हम श्रेष्ठ कृति हैं।
खेद है कि नहीं हम समझते-
छुपा इक अंदर सवेरा है।।
दानव तिमिर का...........।।
जला दीप अंदर का देखो,
बस,उससे छटेगा अँधेरा।
जब ज्योति अंदर की जलती-
तम लुप्त होता घनेरा है।।
दानव तिमिर का.........।।
जलाते दशानन को नाहक,
अंदर का राक्षस जलाओ।
होगा जल के तुरत खाक़ वह-
बना पाप का जो डेरा है।।
दानव तिमिर का...........।।
ज्ञान-दीपक सब मिल जलाओ,
मिटेगा तिमिर जग से झट-पट।
बना जिसका है दबदबा भी-
महि को इसने ही घेरा है।।
दानव तिमिर............।।
ज्ञान-दीपक बुझने न पाए,
उसे प्रेम-बाती भी देना।
मुमकिन न होगा तब फिर कभी-
लगता अघ का जो फेरा है।।
दानव तिमिर का बसेरा है।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Alka jain
17-Jan-2024 04:28 PM
Nice
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Gunjan Kamal
08-Jan-2024 08:39 PM
👏👌
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Milind salve
08-Jan-2024 07:32 AM
V nice
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